भारत और जापान के संबंध बीते कुछ वर्षों में केवल कूटनीतिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक, रक्षा और तकनीकी स्तर पर भी गहराते जा रहे हैं। इस रिश्ते की नींव तब और मजबूत हुई जब जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में भारतीय संसद में ऐतिहासिक भाषण “कंफ्लुएंस ऑफ द टू सीज” दिया। उन्होंने भारत को समान विचारों और मूल्यों वाला ऐसा मित्र बताया, जो क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए मिलकर काम कर सकता है। उन्होंने भारत और जापान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को रेखांकित करते हुए विवेकानंद और ओकाकुरा तेनशिन के संबंधों का उल्लेख किया।
हाल ही में जापान के रक्षा मंत्री जनरल नाकातानी की भारत यात्रा ने दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को नई मजबूती दी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर संवेदना व्यक्त करते हुए भारत को आतंकवाद के खिलाफ पूरा समर्थन देने की बात कही। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी जापान की इस एकजुटता के लिए धन्यवाद व्यक्त किया।
यह यात्रा ऐसे समय हुई जब क्वाड (भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) की भूमिका वैश्विक मंच पर फिर से चर्चा में है। ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर गीतांजलि सिन्हा रॉय के अनुसार, यह दौरा भारत-जापान रिश्तों की मजबूती और क्वाड की भूमिका को दर्शाता है। हालांकि क्वाड की तरफ से संयुक्त बयान नहीं आया, पर यह स्पष्ट है कि जापान भारत का अधिक विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार बनता जा रहा है।
इस साल भारत और जापान ने ‘यूनिकॉर्न’ नामक नई रक्षा सहयोग पहल शुरू की, जिसका उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, ड्रोन और समुद्री रक्षा में संयुक्त अनुसंधान और उत्पादन को बढ़ावा देना है। यह पहल ‘मेक इन इंडिया’ और ‘फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक’ के साझा लक्ष्य को आगे बढ़ाने में सहायक है।
भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के तेजी से उभरने के साथ जापान की रुचि और निवेश भी बढ़ रहा है। एप्पल जैसी कंपनियों के भारत में निर्माण इकाइयाँ स्थापित करने से यह स्पष्ट है कि भारत वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है, जो जापान के लिए चीन पर निर्भरता कम करने का विकल्प बन सकता है।
भारत-जापान रक्षा सहयोग में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एक महत्वपूर्ण पहलू बनता जा रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में रूस से आयात कम किया है, जिससे जापान जैसे देशों के लिए अवसर बढ़े हैं। खासकर नौसेना प्रणालियों और ड्रोन तकनीक में जापान की भूमिका अहम हो सकती है।
चीन की बढ़ती आक्रामकता और साइबर सुरक्षा संबंधी आशंकाओं के बीच जापान भारत के साथ सहयोग को एक सुरक्षित और पारदर्शी आपूर्ति श्रृंखला के रूप में देखता है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाए गए कदम, जापान को एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार मुहैया कराते हैं।
इस तरह, बदलते वैश्विक समीकरणों में भारत और जापान की यह धुरी एक निर्णायक रणनीतिक शक्ति बनती जा रही है, जो न केवल क्षेत्रीय स्थिरता बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।