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सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी हिमाचल के ग्लेशियरों की निगरानी, खतरा बन गई हैं 650 झीलें

हिमाचल प्रदेश में तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण 650 झीलें बन गई हैं। हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील ग्लेशियरों की निगरानी अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी। तकनीक के इस्तेमाल से पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जाएगी, जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं की अग्रिम जानकारी मिल सकेगी। तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण हिमाचल में 650 झीलें बन गई हैं। राज्य सरकार ने जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे ग्लेशियरों का अध्ययन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राॅपिकल मेट्रोलॉजी पुणे (आईआईटीएम) से करवाने का फैसला लिया है। प्रदेश में साल दर साल बढ़ रही बादल फटने की घटनाओं की भी यह संस्थान जांच करेगा।

सेंसर की मदद से ग्लेशियरों के तापमान, आर्द्रता, बर्फ की गहराई को मापा जाएगा। फ्लो मीटर की मदद से नदियों और ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी की मात्रा को मापा जाएगा, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर का सटीक आकलन किया जा सके। कैमरों की मदद से समय-समय पर ग्लेशियरों की तस्वीरें ली जाएंगी। इससे इनके आकार-संरचना में होने वाले बदलाव को ट्रैक किया जाएगा। ग्लेशियरों के पिघलने से उत्पन्न होने वाली संभावित बाढ़ जैसी आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली भी विकसित होगी, जिससे समय रहते खतरे की जानकारी मिले। हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे ऊंचाई वाले इलाकों में करीब 850 छोटी-बड़ी झीलें बन चुकी हैं। 650 से ज्यादा झीलें हिमाचल के लिहाज से संवेदनशील हैं। झीलों पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लगातार अध्ययन कर रहा है।

वैज्ञानिकों की मानें तो तापमान में बढ़ोतरी की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघलने से कृत्रिम झीलों का आकार भी बढ़ रहा है। कुछ वर्षों में ही सतलुज, चिनाब, रावी और ब्यास बेसिन पर 200 से अधिक नई प्राकृतिक झीलें बन गई हैं। सतलुज बेसिन पर कुल 500, चिनाब में 150, ब्यास में 120 और रावी में 80 झीलें बनी हैं। झीलों में पानी की मात्रा बढ़ने पर उन पर बारीकी से नजर रखी जा रही है। झीलों के बननेे में सहायक ग्लेशियरों पर नजर रखने के लिए जहां अब तक सैटेलाइट तस्वीरों की मदद ली जा रही थी, अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से कड़ी निगरानी की जाएगी।

ग्लेशियरों की निगरानी के लिए सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरे लगाए जाएंगे, जिससे पूर्व चेतावनी प्रणाली की मदद से बाढ़ जैसी आपदाओं की अग्रिम जानकारी मिल सके। खतरे को लेकर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कंट्रोल रूम में सूचना मिल जाएगी और तुरंत एहतियाती कदम उठाए जाएंगे।

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