रामपुर, किन्नौर और कुल्लू के गांवों में पनप रहा त्वचा का नया रोग, 11 गांवों में मिलीं बालू मक्खियां

हिमाचल प्रदेश में त्वचा की नई तरह की बीमारी फैल रही है। पहले यह रोग राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे गर्म इलाकों में होता था, लेकिन अब यह पहाड़ों में भी फैल रहा है।
हिमाचल प्रदेश के रामपुर, किन्नौर और कुल्लू के गांवों में त्वचा की नई तरह की बीमारी फैल रही है। इस बीमारी का नाम है कटेनेयस लीशमैनियासिस (सीएल)। यह बीमारी सैंडफ्लाई (बालू मक्खी) के काटने से फैलती है। पहले यह रोग राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे गर्म इलाकों में होता था, लेकिन अब यह पहाड़ों में भी फैल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कारण जलवायु में हो रहा बदलाव है। यह खुलासा हाल ही में किए गए शोध में हुआ है।
यह शोध इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला और रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) डिब्रूगढ़ ने मिलकर रामपुर, नित्थर और निरमंड ब्लॉक के 20 गांवों में किया। हर गांव में 15–20 घरों की जांच की गई। इसमें 11 गांवों में सैंडफ्लाई मिली, जो यह बीमारी फैलाती है। कुल 332 सैंडफ्लाई पकड़ी गईं, जिनमें बीमारियां फैलाने वाली प्रजातियां थीं। ये मक्खियां घरों के पास बने मवेशियों के बाड़ों में मिलीं, जो ईंट और मिट्टी से बने थे। शोध में यह भी देखा गया कि जून से अगस्त के बीच तापमान 20 डिग्री से ऊपर चला जाता है और नमी 60 फीसदी से बढ़कर 90 फीसदी तक हो जाती है। इस समय पर सबसे ज्यादा इस बीमारी के मरीज सामने आए। यानी यह बीमारी गर्मी और नमी के मौसम में फैलती है।
शोधकर्ता और त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज वर्मा ने बताया कि हमने दो साल में 50 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया। यह बीमारी अब ऊंचाई वाले ठंडे इलाकों में भी दिख रही है, जो पहले कभी नहीं हुआ। इसके पीछे बड़ा कारण बदलता मौसम है। पर्यावरण विज्ञानी डॉ. रीमा ठाकुर का कहना है कि अब पहाड़ों का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी देखी गई है। इसके कारण सैंडफ्लाई जैसी मक्खियां अब ऊंचाई पर भी पनपने लगी हैं और बीमारियां फैला रही हैं।
कटेनेयस लीशमैनियासिस एक त्वचा की बीमारी है, जो सैंडफ्लाई (बालू मक्खी) नाम की बहुत ही छोटी मक्खी के काटने से होती है। यह मक्खी एक परजीवी को अपने शरीर में लेकर चलती है, जिसे लीशमैनिया कहा जाता है। जब यह मक्खी किसी इंसान को काटती है, तो यह परजीवी उसकी त्वचा में चला जाता है और वहीं पर बीमारी शुरू हो जाती है। शुरुआत में उस जगह पर एक छोटी सी फुंसी या दाना निकलता है, जो धीरे-धीरे बड़ा होकर घाव में बदल जाता है। यह घाव आमतौर पर दर्द नहीं करता, लेकिन काफी समय तक ठीक नहीं होता और मरीज को खुजली होती है। खुले घाव के कारण संक्रमण का खतरा रहता है। यह बीमारी एक इंसान से दूसरे को सीधे नहीं फैलती, लेकिन अगर एक ही इलाके में बहुत सी सैंडफ्लाई हों और वे कई लोगों को काटें, तो कई लोगों को यह बीमारी हो सकती है।