सेब से महंगा ब्लैक अंबर प्लम, भट्ठाकुफर मंडी में 130 रुपये KG बिका; पिछले साल के मुकाबले रेट ज्यादा

शिमला जिले में तैयार ब्लैक अंबर प्लम दाम के मामले में सेब को मात दे रहा है। भट्ठाकुफर फल मंडी में अर्ली वेरायटी के सेब को जहां 80 से 110 रुपये प्रतिकिलो दाम मिल रहे हैं, वहीं ब्लैक अंबर प्लम 120 से 130 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है। यह इस सीजन के अब तक के रिकॉर्ड दाम हैं। यह रेट पिछले साल के मुकाबले 20 से 30 रुपये ज्यादा है।
मंडी में इसके अलावा लगभग सभी स्टोन फ्रूट के 100 रुपये प्रतिकिलो तक दाम मिल रहे हैं। सूरत, मुंबई, अहमदाबाद और पूणे सहित अन्य राज्यों में भी इनकी भारी डिमांड है। भट्ठाकुफर फल मंडी को अधिकतर सेब कारोबार के लिए जाना जाता था। क्योंकि स्टोन फ्रूट की शेल्फ लाइफ कम होती है, वह जल्दी खराब होना शुरू हो जाता है। इसलिए किसान बागवान इसकी कम खेती करते थे। लेकिन अब मौसम में बदलाव होने के साथ बागवानों ने इसकी खेती का रुख करना शुरू कर दिया है।
भट्ठाकुफर फल मंडी के आढ़ती सन्नी ठाकुर का कहना है कि सेब के मुकाबले स्टोन फ्रूट की फसल कम चिलिंग ऑवर में तैयार हो जाती है। इस साल मंडी में बागवानों को प्लम, आडू और बादाम सहित अन्य स्टोन फ्रूट को रिकॉर्ड दाम मिले हैं। आढ़ती प्रवीण का कहना है कि परिवहन की सुविधा बढ़ने से स्टोन फ्रूट की मांग बढ़ गई है। इन फलों की शैल्फ लाइफ ज्यादा नहीं होती, इसलिए बागवान स्टोन फ्रूट की कम बीजाई करते थे, लेकिन अब चेरी को हवाई यात्रा के माध्यम से भेजना भी शुरू कर दिया है। कोटखाई के बागवान दीपक ढांटा का कहना है कि सेब की फसल उगाने के लिए बर्फ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। पिछले कुछ वर्षों से बर्फबारी कम हो गई है। ऐसे में बागवान स्टोन फ्रूट को उगाने की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि इसमें मेहनत भी कम लगती है।
भट्ठाकुफर फल मंडी में भी पिछले कुछ वर्षों से यहां पर स्टोन फ्रूट की फसल भी सेब की फसल के बराबर पहुंचना शुरू हो गई है। बागवानों को कहना है कि मौसम में बदलाव के कारण सेब की फसल खराब हो रही है और पौधों के सूखने की दर बढ़ रही है। यानी सेब की खेती को टिकाऊ बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है।
सेब की पारंपरिक किस्मों को सर्दियों में लगभग 800-1,200 घंटे चिलिंग की जरूरत होती है। बर्फबारी में कमी और सर्दियों का मौसम शुष्क और गर्म होने के कारण आवश्यक चिलिंग हावर्स मिलना मुश्किल होता जा रहा। वहीं प्लम, बादाम, खुबानी जैसे फलों को बहुत कम यानी लगभग 300-500 घंटे चिलिंग ऑवर की आवश्यकता होती है। इसमें सेब की फसल को तैयार करने के मुकाबले मेहनत भी कम लगती है।
स्टोन फ्रूट की इनपुट कॉस्ट सेब के मुकाबले बहुत कम है। यह सबसे बढ़ा कारण है जो स्टोन फ्रूट की खेती की ओर बागवान रुख कर रहे हैं। स्टोन फ्रूट ग्रोअर्स एसोसिएशन ने पांच साल से जो काम किया है, वह अब जमीनी स्तर पर देखने को मिल रहा है।-दीपक सिंघा, प्रदेश अध्यक्ष, स्टोन फ्रूट ग्रोअर्स एसोसिएशन
बागवानों को स्टोन फ्रूट के दाम सेब के बराबर मिल रहे हैं। निचले क्षेत्रों में सेब की अच्छी पैदावार नहीं होती, लेकिन इन क्षेत्रों में स्टोन फ्रूट की अच्छी फसल हो रही है