national credibility at risk in Pakistan

आर्थिक सुधारों के बिना पाकिस्तान को बार-बार मदद से IMF की साख पर सवाल, आतंक को मिल रही अप्रत्यक्ष सहायता

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा पाकिस्तान को एक और राहत पैकेज दिए जाने के फैसले ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। हाल ही में IMF की कार्यकारी समिति ने पाकिस्तान को 2.4 अरब डॉलर की सहायता मंज़ूर की, जबकि भारत ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे सीमापार आतंकवाद के लिए संभावित संसाधन करार दिया। भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया क्योंकि IMF में प्रस्तावों के खिलाफ वोटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की आर्थिक रणनीति मूलभूत सुधारों से बचने और हर संकट में उधारी पर निर्भर रहने की रही है। यही नहीं, पाकिस्तान को अब तक 24 बार IMF का बेलआउट पैकेज मिल चुका है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता हासिल करने में वह बार-बार नाकाम रहा है।

आर्थिक बदहाली के कारण
पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था के पीछे कई कारण हैं – राजनीतिक अस्थिरता, लोकतंत्र की कमजोर नींव, सेना का अत्यधिक दखल, टैक्स वसूली में कमी, और घरेलू संसाधनों की उपेक्षा। देश में सब्सिडी की राजनीति और नीतिगत लचरपन ने हालात और खराब कर दिए हैं।

विशेषज्ञ डॉ. मनोरंजन शर्मा का कहना है कि बार-बार IMF की मदद “अच्छे पैसे को बुरे पैसे के पीछे फेंकने” जैसा है। उनका मानना है कि पाकिस्तान में कर व्यवस्था सीमित है, ऊर्जा क्षेत्र में सुधार नहीं हुए हैं, और सरकारी संस्थान लगातार घाटे में चल रहे हैं।

आतंकवाद को मिल रही अप्रत्यक्ष सहायता
भारत ने चिंता जताई है कि पाकिस्तान IMF की सहायता का उपयोग आर्थिक बजट संतुलन के लिए करता है, जिससे अन्य संसाधन आतंकवाद को समर्थन देने में लग सकते हैं। FATF द्वारा 2018 से 2022 तक पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखना इस आशंका की पुष्टि करता है। IMF के पास भी सहायता राशि की निगरानी का कोई सख्त तंत्र नहीं है।

राजनीतिक अस्थिरता और नीतिगत असफलता
डिफेंस एक्सपर्ट गौरव पांडेय का मानना है कि पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, बार-बार सरकारों का बदलना और सेना का हस्तक्षेप नीतिगत निरंतरता को बाधित करता है। इसके चलते सुधार अधूरे रह जाते हैं और IMF की राहतें सिर्फ तात्कालिक समाधान बनकर रह जाती हैं।

सेना का बढ़ता वर्चस्व और न्यायिक कमजोरी
पाकिस्तान में सेना न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि आर्थिक गतिविधियों में भी गहरी भागीदारी रखती है। न्यायपालिका और कर व्यवस्था जैसे संस्थानों की स्थिति कमजोर है। इससे जनता का विश्वास टूटता है और विदेशी निवेशक भी पीछे हटते हैं।

IMF की साख पर असर
IMF का पाकिस्तान को बार-बार बिना सख्त शर्तों के सहायता देना उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। विश्लेषकों का कहना है कि IMF को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सुरक्षा पहलुओं को ध्यान में रखकर मदद करनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धन का इस्तेमाल आतंक के लिए न हो और क्षेत्रीय शांति प्रभावित न हो।

निष्कर्ष
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति लगातार गिरती जा रही है। IMF की मदद अगर ढांचागत सुधारों के बिना दी जाती रही, तो यह न सिर्फ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बल्कि IMF की साख और दक्षिण एशिया की स्थिरता को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

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