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कुल्लू में बादल फटने के बाद लकड़ियों के साथ बहकर आया सवालों का सैलाब, जानें विस्तार से

जिला कुल्लू की गड़सा घाटी की मनिहार बीट में वर्ष 2011-12 से वन निगम की ओर से सूखे व गिरे हुए पेड़ों को काटा जा रहा था। मगर इसकी आड़ में यहां हरे-भरे पेड़ों भी कुल्हाड़ी चलाई गई। ऐसे में 25 जून को पुष्पा फिल्म की तरह नाले में लगभग एक किलोमीटर तक बाढ़ के साथ लकड़ियां बह रही थीं।

25 जून को शिलागढ़ में बादल फटने से मनिहार बीट से हजारों टन लकड़ियां बाढ़ में बहती हुईं देखी गईं। नाले में लगभग एक किलोमीटर तक बाढ़ के साथ लकड़ियां बह रही थीं। इतनी लकड़ियां कहां से आईं, यह प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। कांग्रेस के साथ भाजपा भी प्रदेश सरकार से जांच करने की मांग कर रही है।

बताया जा रहा है कि गड़सा घाटी की मनिहार बीट में वर्ष 2011-12 से वन निगम की ओर से सूखे व गिरे हुए पेड़ों को काटा जा रहा था। मगर इसकी आड़ में यहां हरे-भरे पेड़ों भी कुल्हाड़ी चलाई गई। इसको लेकर क्षेत्र के लोगों ने वन विभाग कुल्लू को समय-समय पर लिखित में शिकायतें कीं, मगर कोई कार्रवाई नहीं की। 

समाजसेवी एवं शिकायतकर्ता भोला राम ने कहा कि शिलागढ़ की पहाड़ी में डेढ़ दशक से वन निगम लकड़ी निकालने का काम कर रहा है। इसी आड़ में जमकर पेड़ों को अवैध कटान किया गया। मनिहार बीट के जंगल में करीब 90 फीसदी देवदार के पेड़ हैं। ऐसे में अवैध कटान से इन्कार नहीं किया जा सकता है। भोला राम ने कहा कि वह खुद जंगल का निरीक्षण करेंगे। उन्होंने कहा कि अवैध कटान की सरकार को जांच करनी चाहिए। 

सूत्र बताते हैं कि 25 जून को बादल फटने के बाद जब हुरला नाला में बाढ़ आई तो शिलागढ़ के जंगलों में करीब 2,000 से अधिक स्लीपर थे। वहीं, पंचायत पारली के प्रधान राज मल्होत्रा ने कहा कि शिलागढ़ के मनिहार बीट में बादल फटने से लकड़ियां बहकर आई हैं। इसके बाद उन्होंने बीट गार्ड के साथ जंगल का निरीक्षण किया। लेकिन किसी तरह का अवैध कटान नहीं पाया गया है। वन निगम द्वारा किए कटान की मौके पर गली-सड़ी लकड़ियां पाई गईं।

वन निगम अगर कटान कर रहा था तो सरकार व वन विभाग को चाहिए कि निगम को कितने पेड़ों को काटने की अनुमति थी और वर्तमान में कितने पेड़ काटे गए हैं। सरकार को जांच कर पेड़ों की गिनती करनी चाहिए। कहा कि हुरला नाले में बाढ़ में जो मंजर लकड़ियों का था, वह हैरान करने वाला था। यह जांच का विषय है।

शिलागढ़ की पहाड़ी में जिस जगह बादल फटा है, उस जगह वन क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है। सेटेलाइट फोटों के अनुसार वन क्षेत्र का हजारों हेक्टेयर तबाह हो गया है। बाढ़ में इतनी लकड़ी कैसे आई, इसकी वन विभाग की टीम जांच कर रही है। इसके लिए एक टीम पंडोह भी भेजी गई थी मगर किसी तरह के स्लीपर नहीं पाए गए हैं।

विकास निगम के उपाध्यक्ष केहर सिंह खाची ने मंडी में प्रेसवार्ता में कहा कि कुल्लू जिले की सैंज घाटी में बादल फटने के बाद नाले में बहकर पंडोह डैम में पहुंची लकड़ी वनभूमि पर बेकार पड़ी थी। वन विभाग के अधिकारियों से चर्चा करने और मौके पर जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने पर पता चला कि यह लकड़ी वर्षों से जंगलों में बेकार पड़ी थी। उन्होंने कहा कि बीते 25 जून को कुल्लू जिला में बादल फटने की घटना में लकड़ी बहकर आई है, वह बेकार पड़ी थी।

उन्होंने बताया कि कुल्लू जिले के पार्वती व सराज वन मंडल के अंतर्गत गड़सा घाटी में विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और उसके साथ लगते सेंक्चुरी एरिया में गिरने वाले पड़ों को उठाने की मनाही है। बादल फटने की घटना से वन भूमि के साथ-साथ बड़े-बड़े पेड़ टूटकर नाले में 27 किलोमीटर के एरिया में बिखरे पड़े हैं। नुकसान का आकलन करने के लिए तीन टीमें बनाई हैं। वर्ष 2023 में मंडी जिला के थुनाग में मलबे के साथ बहकर आई लकड़ी की जांच रिपोर्ट भी सरकार को भेजी जा रही है। खाची ने ठियोग के विधायक कुलदीप सिंह राठौर के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वे पार्टी के हित के लिए कार्य करें, सरकार के खिलाफ बयानबाजी से परहेज करें। 

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