किन्नौर के अंतिम छोर शिपकी-ला के रास्ते तिब्बत के साथ आजादी से पहले से होता रहा है व्यापार

चीन-तिब्बत सीमा से सटा शिपकी-ला अब पर्यटकों को नया अनुभव देगा। सैलानियों के यहां पहुंचने से जहां पर्यटन को पंख लगेंगे, वहीं स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे। किन्नौर जिले के अंतिम छोर शिपकी-ला के रास्ते तिब्बत के साथ आजादी के पहले से भारतीय व्यापारी व्यापार करते थे। डोकलाम की घटना व कोरोना के बाद 2019 में व्यापार बंद कर दिया गया। इसके बाद से पर्यटकों को यहां आने की अनुमति नहीं थी। केवल स्थानीय लोग ही बाॅर्डर तक जा पाते थे। पर्यटक नेशनल हाईवे से खाप, नाको जा सकते थे। शिपकी-ला से किन्नौर जिले के लोग घोड़े पर सवार होकर सीमा पार करके तिब्बत पहुंचते थे। व्यापार का यह मुख्य रास्ता था। शिपकी-ला वही स्थान है, जिसके नीचे से सतलुज नदी भारत में प्रवेश करती है। किन्नौर जिला के लोग चावल, गुड़, नारियल का तेल, रिफाइंड तेल और दाल समेत अन्य सामान लेकर तिब्बत जाते थे। इस सामान के बदले लोग तिब्बत से चिग्गू नस्ल के बकरे, सूखा पनीर, याक, घोड़े, ऊन, मक्खन, चाइनीज क्राॅकरी, थर्मस आदि लेकर आते थे।
हिमाचल से तिब्बत को 36 वस्तुएं होती थीं निर्यात
तिब्बत को 36 वस्तुएं निर्यात की जाती थीं और तिब्बत से 20 वस्तुएं आयात होती थीं। भारत से तिब्बत के लिए कृषि उपकरण, कंबल, कॉपर प्रोडक्ट, कपड़े, टेक्सटाइल, साइकिल, कॉफी, चाय, बारले राइस ड्राई फ्रूट, फ्रेश वेजिटेबल्स, वेजिटेबल ऑयल, गुड़, मिश्री, तंबाकू सिगरेट, फूड्स एग्रो केमिकल, लोकल हर्ब्स, मसाले, जूते, स्टेशनरी समेत कई वस्तुएं निर्यात की जाती थीं। तिब्बत से ऊन, गोट पशमीना, गोट स्क्रीन शिप स्किन, भेड़ें, घोड़े, नमक, मक्खन सिल्क और रेडीमेड गारमेंट्स के साथ स्थानीय जड़ी-बूटियों बनी दवाइयां लाते थे। नमज्ञा गांव के लोगों का कहना है कि सरकार यहां के लोगों को व्यापार करने की छूट प्रदान करे।
सीमा पर 1967 में चौकी का उद्घाटन
साल 1962 में शिपकी-ला में सीमा पर पुलिस की चौकी स्थापित की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1967 में इस चौकी का उद्घाटन किया था। उस वक्त शिपकी-ला को एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) घोषित किया गया। इसके बावजूद साल 1994 तक व्यापार बिना रोक-टोक के होता रहा। साल 1994 में यहां कस्टम विभाग की ब्रांच स्थापित कर दी गई। इसके बाद कारोबार पर कर का भुगतान करना पड़ता था। 2019 तक यह व्यापार होता रहा। तहसीलदार पूह ट्रेड पास बनाते थे। इसके बाद स्थानीय लोग व्यापार के लिए तिब्बत जा सकते थे।
पेमाला था पुराना नाम
नमज्ञा पंचायत के पूर्व प्रधान नोरबू छोरिया ने बताया कि शिपकी-ला का पुराना नाम पेमाला (साझा द्वार) था। इसे साझा धार भी कहा जाता था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) घोषित किया। इसका पत्थर आज भी वहां पर मौजूद है। उसके बाद बॉर्डर पुलिस ने इसका नाम शिपकी-ला रखा।
मानसरोवर तक है मार्ग
नमज्ञा गांव की महिला मंडल प्रधान सरस्वती नेगी ने बताया कि मानसरोवर तक जाने के लिए शिपकी-ला से मार्ग है। चीन की सड़क शिपकी गांव तक है। बीच में 4 किलोमीटर का रास्ता है। घोड़े पर 15 दिन का समय कैलाश मानसरोवर तक लगता था। यह रास्ता व्यापार के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया था। अब युवाओं को रोेजगार के अवसर मिलेंगे।
तीन रियासतों के बीच हुई थी संधि
658 लोगों की आवादी वाली नमज्ञा पंचायत के प्रधान बलदेव नेगी ने बताया कि लद्दाख, रामपुर बुशहर और गुगे (तिब्बत) तीन रियासतों के बीच संधि हुई थी। यह बात उन्होंने बुजुर्गों से ही सुनी है। ये संधि व्यापार को लेकर हुई थी। संधि के दौरान कसम खाई थी कि जब तक मानसरोवर झील का पानी सूख न जाए, काला कौआ सफेद न हो जाए और सबसे ऊंची चोटी रियोपुर्गुल मैदान न बन जाए, तब तक व्यापार चलता रहेगा।
भारत-तिब्बत व्यापार दोबारा हो शुरू
किन्नौर-इंडो-चाइना ट्रेड एसोसिएशन वाया शिपकी-ला के अध्यक्ष हिशे नेगी ने बताया कि भारत-तिब्बत व्यापार को एक बार फिर से शुरू करने के लिए सीएम को मांगपत्र सौंपा है। व्यापार शुरू होने से दोनों देशों में अच्छे संबंध बने रहेंगे।
पर्यटन से मिलेंगे रोजगार के अवसर
नमज्ञा गांव के युवा एवं पूह ब्लॉक यूथ कांग्रेस अध्यक्ष उर्गन यांगफेल ने बताया कि आजादी के बाद पहली बार शिपकी-ला बॉर्डर टूरिज्म के लिए खोला गया। युवाओं को अब पर्यटन व्यवसाय में रोजगार के अवसर मिल सकेंगे। 9 जून 1968 को ऐतिहासिक दिन था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री वाईएस परमार शिपकी-ला पहुंचे थे। उसके बाद अब मुख्यमंत्री सुक्खू पहुंचे हैं।